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गृहप्रवेश एवं प्रतिष्ठान शुभारम्भ मुहूर्त
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वास्तु टिप
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मनुष्य अपने परिवार के संरक्षण,पोषण एवं सुखच्चान्ति के लिए सम्यक् पुरूषार्थ करता हैं । गृहनिर्माण जीवन का महत्तवपूर्ण कार्य होता हैं । गृहनिर्माण वास्तु द्राास्त्रों के विधि-विधान से बनाना जितना महत्तवपूर्ण है उतना ही ज्योतिद्गा अनुसार गृहप्रवेच्च भी महत्तवपूर्ण हैं ।
ज्योतिष ग्रन्थों में गृहस्वामी की राच्चि,ग्राम राच्चि,च्चुभलग्न तिथि चन्द्रमा,सूर्यदच्चा को ध्यान में रखते हुए गृहप्रवेच्च करने का उल्लेख किया हैं ।
गृहनिर्माण के आधार पर गृह प्रवेच्च तीन प्रकार हैं-
1- अपूर्व (नूतन) गृहप्रवेच्च - जिस गृह का नवीन निर्माण कराया गया हो,उसमें अनुद्गठान पूर्वक प्रथम प्रवेच्च अपूर्व गृहप्रवेच्च हैं ।
2- सपूर्व गृहप्रवेच्च - यात्रा आदि से वापिस आकर प्रवेच्च सपूर्व गृहप्रवेच्च हैं ।
3- द्वंद्वाभय गृहप्रवेच्च - पुराने मकान का किसी भी कारण से जीर्णोद्धार कराने के बाद प्रवेच्च द्वंद्वाभय गृहप्रवेच्च हैं ।
गृहप्रवेश मुहूर्त
अपूर्व गृह प्रवेच्च :
अयन उत्तरायण
मास माघ,फाल्गुन,वैच्चाख,ज्येद्गठ
वार चन्द्र,बुध,गुरू,च्चुक्र,च्चनि
तिथि /च्चु.पक्ष /कृ.पक्ष 2,3,5,6,7,8,10,12,13,15
1,2,3,5,6,7,8,10
नक्षत्र
लग्न/उत्तम /मध्यम उत्तरा भाद्रपर उत्तरा फाल्गुनी,उत्तराद्गााढ़ा,रोहणी,मृगच्चिरा चित्रा,अनुराधा,रेवती
2,5,8,11
3,6,6,12
लग्न द्राुद्धि 1,2,3,5,7,6,10,11 इन स्थानों में द्राुभ ग्रह द्राुभ हैं । 3,6,11 में पाप ग्रह द्राुभ हैं । 4,8,12 स्थानों में ग्रह निद्गिाद्ध हैं ।
लग्न स्थिर उत्तम,द्विस्वभाव मध्यम
गुरू,द्राुक्र, अस्त इसमें गृहप्रवेच्च नहीं करना चाहिये ।
सपूर्व गृहप्रवेच्च :
अयन उत्तरायण एवं दक्षिणयन में
मास श्रावण कार्तिक,मगच्चिर,माघ,फाल्गुन,वैच्चाख,ज्येद्गठ
वार चन्द्र,बुध,गुरू,च्चुक्र,च्चनि
तिथि 2,3,5,7,10,11,12,13
नक्षत्र द्रातभिद्गाा,पुद्गय,स्वाति,चित्रा,अनुराधा,मृगच्चिर,रेवती,रोहणी,उत्तराभाद्रपद,उत्तराद्गााढा,उत्तराफाल्गुनी,घनिद्गटा
लग्न उत्तम/मध्यम 2,5,8,11
3,6,9,12
लग्न द्राुद्धि 1,2,3,5,7,6,10,11 इन स्थानों में द्राुभ ग्रह द्राुभ हैं । 3,6,11 में पाप ग्रह द्राुभ हैं । 4,8,12 स्थानों में ग्रह निद्गिाद्ध हैं ।
लग्न स्थिर उत्तम,द्विस्वभाव मध्यम
गुरू द्राुक्र अस्त इसमें गृह प्रवेच्च नहीं करना चाहिये ।
कलश चक्र शुध्दि :-
तीनो प्रकार के गृहप्रवेच्च मे कलच्चचक्र द्राुध्दि होना अनिवार्य है। सूर्य नक्षत्र से कार्य नक्षत्र की गणनानुसार उसका फल निम्न है।
नक्षत्र 1 2,34,5 6,7,8,9 10,11,12,13 14,15,16,17 18,19,20,21, 22,23,24, 25,26,27
लाभा अग्नि भय उजाड़ लाभ धन प्राप्ति कलह विनाच्च स्थिरता स्थिरता
त्याज्य :-
गृह स्वामी का जन्म का चन्द्रमा ,दुद्गट चन्द्रमा 4,8,12, चैत्र मास, मंगलवार रिक्ता तिथि एवं दग्धा तिथि
गृहप्रवेद्गा विधिः-
दो दिन पूर्व विधिपूर्वक नूतन गृह मे जाप्य प्रारम्भ करे कम से कम ग्यारह हजार जप करना चाहिए। द्राुक्ल पक्ष मे गृहप्रवेद्गा सर्वोत्तम है, कृद्गणपक्ष मे चोरो का भय रहता है।
जाप्य मन्त्रः-
1 ऊॅं हीं अर्हं जगच्छान्तिकराय द्राान्तिनाथाय सर्वोपद्रव द्राान्तिं कुरू कुरू नमः।
2 ऊॅं हीं अर्हं अ सि आ उ सा सर्व द्राान्तिं कुरू कुरू हीं नमः।
जाप विधि :-
जिस स्थान पर मन्त्राराधन (जाप) करना हो तो स्थल द्राुध्दि करें ऊपर चन्दोवा एवं छत्र लगावें टेबिल पर चौका रखकर सिंहासन मे विनायक यन्त्र या सिध्दयन्त्र की स्थापना करें।
पूजा की सामग्री ,मंगल कलच्च एवं चार कलच्च ,दीपक ,च्चुध्द धूप , लाल कपड़ा ,हल्दी गांठ,सुपारी ,पीला सरसों,रजत स्वस्तिक ,पन्चरत्न ,सवा रूपया ,कलावा आदि सामग्री आवच्च्यक है।
प्रथम मंगलाद्गटक ,दिग्बन्धन ,अंगरक्षामन्त्र और बृहच्छान्ति मन्त्राराधन करें।
पात्र द्राुध्दि ,करके यज्ञोपवीत धारण करें सप्तव्यसन ,रात्रि भोजन, अगालित जल एवं अभक्ष्य भोजन का त्याग ,अद्गट मूलगुण का पालन,ब्रहमाचर्य व्रत धारण करे यन्त्र के चारो तरफ पुद्गपो से स्वस्तिक बनाकर मंगल कलद्गा मे हल्दी गांठ,सुपारी,पन्चरत्न,चॉंदी का स्वस्तिक ,पीली सरसो ,सवा रूपया डालकर कलावा से वेद्गिटत कर लाल या पीले कपड़ा मे सूखे श्रीफल (नारियल) कलावा से बॉधकर कलद्गा पर रखे । कलच्च ईच्चान कोण मे स्थापित करें दीपक प्रज्जवलित करें, किन्तु दीपक पर जाली रखना अत्यावच्च्यक हैं। हिंसा नही हो इसका ध्यान रखें तथा दीपक आग्नेय कोण मे स्थापित करें।
जाप के लिए आसन, पाटा, द्राुध्द ,धूप ,दीपक,धूपदान जापमाला और गणना के लिए लवंग रखना चाहिए । विनायक यन्त्र का अभिद्गोक पूजा करके जाप का संकल्प करें , फिर उचित आसन से नौबार णमोकार मन्त्र पढ़कर मन्त्र का द्राुध्द उच्चारण करते हुए जाप प्रारम्भ करें। एक माला के पच्च्चात् थोडी धूप अग्नि पात्र मे क्षेपण करें और एक लवंग गणना के लिए रख दें। इसी विधि से माला करना चाहिए । जाप समापन के समय पुनः नौबार णमोकार मन्त्र पढ़कर स्थान छोड़ना चाहिए।
जाप्य का संकल्प जितना किया हो उसे पूर्ण करें। सुविधानुसार एक स्थान पर भक्तामर या णमोकार का पाठ अधिक से अधिक करना चाहिए । जितना मन्त्राराधन या पाठ किया जाय उतना ही द्राुभ है। गृहप्रवेच्च के पूर्व श्री जिन मन्दिर मे द्राान्ति विधान या पन्चपरमेद्गठी विधान करना चाहिए । गृह के दरवाजे पर स्वस्तिक ,ऊॅ ंकेच्चर से लिखें दोनो तरफ द्राुभ लाभ लिखें, श्री महावीराय नमः दरवाजे पर लिखना चाहिए ।
गृह प्रवेच्च जिसके नाम से हो वह थाली मे मंगल कलच्च (जिसमे हल्दी ,सुपाडी,सरसो ,चॉंदी का स्वस्तिक, पन्चरत्न ,पुराने पॉंच रूप्या डालें और उस पर कपड़ा लपेटकर नारियल रखा हो) जलता दीपक ,पीला सरसो आदि द्राुभ सामग्री के साथ प्रवेच्च करे। मंगल कलद्गा एवं दीपक द्राुध्द स्थान पर रखें।
विनायक यन्त्र की पूजा करके हवन करना चाहिए । हवन के पच्च्चात् पुण्याहवाचन द्राान्तिभक्ति एवं विसर्जन करें। यन्त्र के अभिद्गोक एवं पुण्याहवाचन के जल से समस्त स्थान की द्राुध्दि करें किन्तु द्राुध्दि करते समय जल नीचे नही गिरना चाहिए इसका ध्यान रखे गृहप्रवेच्च के पच्च्चात् मिद्गठान्न वितरण करें और साधर्मीजनो को भोजन करावें।
यथाच्चक्ति धर्मस्थलो को दान देना चाहिए, यन्त्रादि मन्दिर जीम े स्थापति करना चाहिए।
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